Tuesday, December 6, 2016

Note Bandi ki Katha - Narad Ji Ke Jubani

पृथ्वीलोक से लौटे देवदूतों ने, 
स्वर्गलोक में मोदी का यशोगान सुनाया 
सुनते ही देवराज इंद्र का सर चकराया! 
उसे इंद्रलोक का सिंहासन डोलता नजर आया!! 

दौडा -दौडा पहुंचा ब्रह्मा जी के द्वार!  
रक्षा करो प्रभु!  हे जगत आधार!! 
पृथ्वीलोक पर "नरेन्द्र" नामक मानव ने  कोहराम मचाया है!  
स्वर्गलोक का सिंहासन हडपने का विचार उसके मन में आया है!!
स्वर्गलोक में मोदी मोदी के नारे लग रहे हैं। 
लोग राजा का चुनाव करने की मांग कर रहे हैं।  

बदहवास इन्द्र को देख ब्रह्मा मुस्कुराये।
बोले -तुम भी इन्द्र, वो भी नरेन्द्र! 
फिर दौनों के मध्य किस बात का द्वन्द! 
हे देवराज, वो मानव है महान। 
उसे मिला है काशी विश्वनाथ से 
चक्रवर्ती सम्राट होने का वरदान।। 
इसलिये तुम कैलाश पर्वत जाओ। 
महादेव को अपनी व्यथा सुनाओ।। 

घबराया इन्द्र कैलाश पर्वत आ पहुंचा। 
कांधे पे लटके वस्त्र से माथे का पसीना पोंछा। 
बोला -हे जटाधारी! 
स्वर्गलोक पर आई मुसीबत भारी!! 
पृथ्वीलोक का पूरा वृतांत सुनाया। 
आंख में आंसू, गला भर आया।। 
हे प्रभु कुछ तो करो उपाय। 
मेरा सिंहासन और देवताओं की लाज बच जाये।। 
एक मानव स्वर्गलोक पर राज करेगा। 
और देवता राशन, बैंक की लाइन में लगेगा। 
अप्सरा और दासी एक ही श्रेणी में आयेगी। 
हे प्रभु, स्वर्गलोक की औकात क्या रह जायेगी।  
महादेव बोले -हे देवराज इंद्र! 
उचित है आपका ये अन्तर्द्वन्द!! 
पर नरेन्द्र ने कैलाश पर दो वर्ष के कठिन तप से वरदान पाया है!  
अमीर और गरीब के भेद को दूर करने का,बीडा उठाया है!  
उसकी तपस्या व्यर्थ नहीं जायेगी!  
पृथ्वीलोक के बाद स्वर्गलोक की भी बारी आयेगी! !  
हे देव, तुम बैकुंठधाम जाओ। 
श्री हरि को अपनी व्यथा सुनाओ।। 

सुनते ही इन्द्र करने लगा विलाप। 
हुआ नहीं दूर, उसके मन का संताप।। 
थोडी देर में होश आया। 
स्वयं को क्षीरसागर में लेटे, 
लक्ष्मी -नारायण के चरणों में पाया।। 
बोला हे स्वामी!  
आप तो हैं अन्तर्यामी!! 
पृथ्वीलोक पर नरेन्द्र नाम का राजा 
आतंक मचा रहा है!  
खुद को लक्ष्मी का शत्रु बता रहा है!!  
उसने अपने राज्य में लगा दी है 
लक्ष्मी पर पाबंदी। 
प्रजा की भाषा में जिसे कहते हैं 
नोटबंदी।। 
लक्ष्मी जी बोली - 
हे देवराज! तुम्हारी बात सुनकर 
भर आया है मेरा मन! 
जिसे तुम लक्ष्मी कह रहे हो 
दरअसल तो वो है कालाधन!! 
मजदूर के पसीने में,
गरीब की रोटी में, 
किसान की फसल में, 
बच्चों की मुस्कान में है मेरा धाम। 
अरे! बिस्तर, तकिये, बक्से, टायलेट की दीवारों में, 
मेरा क्या काम।। 
हे देवराज, आपकी आशा है व्यर्थ। 
आपकी सहायता करने में हम नहीं है समर्थ।। 
जाओ वापस, इन्द्रलोक जाओ। 
अप्सराओं का रास रंग छोड, 
अमीर गरीब का भेद मिटाओ। 
शतायु पूर्ण होने पर, 
जब नरेन्द्र स्वर्गलोक में आयेगा। 
अपने प्रतापी शौर्य, शत् कर्मों से 
स्वर्गलोक का राज सिंहासन पायेगा।। 
स्वर्गलोक को भी है, नरेन्द्र से एक ही आस! 
सबका साथ - सबका विकास!!

और इधर पृथ्वीलोक में कुछ संपाती, 
जुगनुओं की तरह टिमटिमा रहे हैं।  
सूरज को छूने की चाह में 
अपने पंख जला रहे हैं।। 
पर अंतत:वो सब मुंह की खायेंगे। 
30 दिसंबर के बाद क्या होगा,हालात बताएंगे।।

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